अमृता प्रीतम की वो नज़्म जो अपने आप में इतिहास है यानी 'अज्ज आखाँ वारिस शाह नूं, कितों कबरां विच्चों बोल'

अमृता प्रीतम की इस नज़्म को 1947 में हुए बंटवारे की नुमाइंदा रचना मानी जाती है. यह नज़्म इतिहास के अहम मौके पर लिखी गयी और खुद भी अपने-आप में इतिहास है.

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