उस्ताद अमजद अली ख़ान का सरोद सफ़र: ग्वालियर से दुनिया के मंच तक

फ़ारसी में स्वर की मधुरता को सरूद कहते हैं और जब इस साज़ ने इस मधुरता को प्रतिध्वनित किया तो इसे सरूद कहा गया, जो आगे चलकर सरोद हुआ.

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